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ग़ज़ल
बरसों में इक जोगी लौटा जंगल में फिर जोत जगाई
कहने लगा ऐ भोले शंकर शहरों में महँगाई बहुत है
साहिर होशियारपुरी
ग़ज़ल
ये किस ने आज जगाई है अहद-ए-रफ़्ता की याद
ये कौन दिल के क़रीं आज नौहा-ख़्वाँ सा है
सूफ़ी ग़ुलाम मुस्ताफ़ा तबस्सुम
ग़ज़ल
हिज्र की रात थी इतनी लम्बी काटे से नाँ कटती थी
ग़म की जोत जगाई मैं ने इस दिल के बहलाने को
बूटा ख़ान राजस
ग़ज़ल
किस को ख़बर है कब कब हम ने उन से दिल की जोत जगाई
दूर दहकते दो अंगारे प्यारे प्यारे रौशन रौशन
नसीम अजमल
ग़ज़ल
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक