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ग़ज़ल
राज़ पोशीदा हैं कितने इक तिरे इज़हार में
वर्ना जुरअत है किसी की सर उठे इंकार में
डॉक्टर नदीम अकबर नदीम
ग़ज़ल
आबरू क्या पैरहन जब बे-गरेबाँ रह गया
बारे आँसू पुछ गए मेरे कि दामाँ रह गया
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
जिन को कुछ मंज़ूर रब की दोस्ती से कम नहीं
मौत भी उन के लिए तो ज़िंदगी से कम नहीं