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ग़ज़ल
दोहरी ज़ंजीरों में जकड़ा है मुक़द्दर ने मुझे
उस का दीवाना है दिल और मैं दीवाना-ए-दिल
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
ज़िंदगी की सख़्त ज़ंजीरों में जकड़ा देख कर
आज तुम भी हंस रहे हो मुझ को तन्हा देख कर
मैकश नागपुरी
ग़ज़ल
हम इस को बाँधते क्या जकड़ा है इस ने हम को
अब देखते हैं सूरत नाचार क़ाफ़िए की
बासिर सुल्तान काज़मी
ग़ज़ल
है बहुत मुश्किल निकलना शहर के बाज़ार में
जब से जकड़ा हूँ मैं कमरे के दर-ओ-दीवार में
बदीउज़्ज़माँ ख़ावर
ग़ज़ल
गुनाहों ने मुझे जकड़ा हुआ है इस तरह 'तन्हा'
कि लहज़ा-भर इबादत भी सज़ा मा'लूम होती है
मसूद तन्हा
ग़ज़ल
बेड़ियाँ डाल के जकड़ा है ख़ुशी ने जब से
ग़म की दहलीज़ पे आ पहुँचे सरकते हुए ख़्वाब
मोइन अफ़रोज़
ग़ज़ल
उस ने जकड़ा है मुझे काँटों के बिस्तर से 'उमूद'
फिर तबस्सुम-भरे होंटों से क़सम खाई है