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ग़ज़ल
आज से पहले हम सभी समझे थे उस को बर्ग-ए-गुल
तजरबा-ए-जलालत-ए-रू-ए-निगार किस को था
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ये क्यूँ बाक़ी रहे आतिश-ज़नो ये भी जला डालो
कि सब बे-घर हों और मेरा हो घर अच्छा नहीं लगता