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परिणाम "jalva-e-aaftaab"
दिल-ए-ज़र्रा ज़र्रा है तूर-ए-तजल्लीज़हे जल्वा-ए-आफ़्ताब-ए-मोहब्बत
दिल में थे लाख वसवसे जल्वा-ए-आफ़्ताब तकरह गई थी जो तीरगी नूर-ए-सहर के बाद भी
जमाल-ओ-हुस्न के पहलू की धूप है दरकारऐ 'आफ़्ताब'-ए-तमन्ना न कर निराश मुझे
मफ़र नहीं ग़म-ए-दुनिया से 'आफ़्ताब-हुसैन'बहुत कठिन है ये मंज़िल मगर ज़रूरी है
नहीं है ताब-ए-नज़ारा ही 'आफ़्ताब' हुसैनवगरना दहर में क्या क्या है देखने के लिए
कभी खिलो भी ये क्या है कि 'आफ़्ताब-हुसैन'पड़े रहो यूँही घर पर किसी के आओ न जाओ
वो 'आफ़्ताब' लब-ए-बाम भी उतर आएमगर किसी में उसे देखने की ताब तो हो
ग़म-ए-जहाँ के झमेलों में आफ़्ताब 'हुसैन'ख़याल-ए-यार की आसूदगी ग़नीमत है
किन मंज़रों में मुझ को महकना था 'आफ़्ताब'किस रेगज़ार पर हूँ मैं आ कर खिला हुआ
टकराओ जा के सुब्ह के साग़र से 'आफ़्ताब'दिल का ये जाम वादा-ए-शब से भरा हुआ
न तुम को फ़र्क़ है मालूम इश्क़-ओ-आतिश काजो 'आफ़्ताब' से नज़रें मिला रही हो तुम
सुनो बग़ौर किसी रोज़ 'आफ़्ताब'-ए-सुख़नवो शायरी के तक़द्दुस का ए'तिबार बना
ज़मीन-ए-इश्क़ पे उतरा है 'आफ़्ताब' सदासो बाज़ुओं में यही हिद्दतें दबोच अभी
कितना रौशन तिरा शबाब हुआजल्वा मानिंद-ए-आफ़्ताब हुआ
ऐ आफ़्ताब-ए-जल्वा-ए-जानाँ बुलंद होखोया हुआ है मतला-ए-दुनिया तिरे लिए
मुन्कशिफ़ थे हम पे असरार-ए-जमालराज़-दार-ए-जल्वा-ए-जानाँ थे हम
नुमाइश तो बजा है जल्वा-ए-हुस्न-ए-मुजस्सम कीये लाज़िम है नज़र शाइस्ता-ए-दीदार हो जाए
हम 'आफ़्ताब' कभी साहब-ए-निसाब न थेकिसी की अपने मुक़द्दर में आरज़ू भी नहीं
मैं हूँ फ़िदा-ए-सुन्नत-ए-मंसूर 'आफ़्ताब'सादिक़ नहीं रहा कभी जाफ़र नहीं रहा
मुक़ाबिल 'आफ़्ताब-अहमद' बहुत हैंतिरा तो क़द्द-ओ-क़ामत कुछ नहीं है
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