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ग़ज़ल
ये कैसा ज़ख़्म है अब तक हरा है क्यों नहीं भरता
यहाँ मरहम नहीं है वक़्त के हाथों में ख़ंजर है
फ़िरोज़ अहमद
ग़ज़ल
शब्बीर रामपुरी
ग़ज़ल
वहाँ इक चाँद सी लड़की भी रहती है ये जाना तब
दरीचे की हया को जब दुपट्टे से उड़ा रक्खा
संजीव आर्या
ग़ज़ल
मैं ने कहा था आज न जाएँ घोड़े बेहद थके हुए हैं
उस ने कहा था जाना तय है दुश्मन पीछे लगे हुए हैं
मोईन निज़ामी
ग़ज़ल
छोड़ कर जाना तन-ए-मजरूह-ए-आशिक़ हैफ़ है
दिल तलब करता है ज़ख़्म और माँगे हैं आ'ज़ा नमक
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ऐ अदू-ए-मस्लहत चंद ब-ज़ब्त अफ़्सुर्दा रह
करदनी है जम्अ' ताब-ए-शोख़ी-ए-दीदार-ए-दोस्त
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ग़ुंचा जब तक चुप रहा हर तरह ख़ातिर जम्अ' थी
ख़ंदा-ए-मुफ़रत ने लेकिन कर दिया आवारा गुल