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ग़ज़ल
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
मिल ही जाएगी कहीं 'हिरमाँ' फ़ज़ा-ए-पुर-सुकूँ
इस जहान आब-ओ-गिल से तो जुदा हो जाइए
हिरमाँ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
बार-ए-ख़ातिर है हयात-ए-पुर-सुकून ओ पुर-जुमूद
मैं वो साहिल हूँ जिसे रहती है तूफ़ाँ की तलाश
नज़ीर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
ग़म-ए-जानाँ ही क्या कम था ग़म-ए-दौराँ भी अपनाया
ख़ुदा जाने असीर-ए-गेसू-ए-पुर-ख़म पे क्या गुज़री
सअादत नज़ीर
ग़ज़ल
सुकूत-ए-शाम में गाना है किस क़दर पुर-कैफ़
शराब-ए-नाब के दरिया बहा रहा है कोई
जगदीश सहाय सक्सेना
ग़ज़ल
मुझ को कहीं मिली नहीं कोई भी राह-ए-पुर-सुकूँ
सम्त-ए-जुनूब भी नहीं सम्त-ए-शुमाल भी नहीं
सुनील कुमार जश्न
ग़ज़ल
इश्क़ का कुछ भी न अंजाम तू ऐ दिल समझा
पहले आसान था क्या अब जिसे मुश्किल समझा