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ग़ज़ल
यूँही गर लुत्फ़ तुम लेते रहोगे ख़ूँ बहाने में
तो बिस्मिल ही नज़र आएँगे हर सू इस ज़माने में
रिफ़अत सेठी
ग़ज़ल
ज़मीं तक ही नहीं चर्चा तिरा अब आसमाँ तक है
कभी तो सोच दिल में जोर की शोहरत कहाँ तक है
साहिर सियालकोटी
ग़ज़ल
मैं ने कहा था आज न जाएँ घोड़े बेहद थके हुए हैं
उस ने कहा था जाना तय है दुश्मन पीछे लगे हुए हैं
मोईन निज़ामी
ग़ज़ल
ऐ बुलबुल-ए-दिल दौड़ के जानाँ कूँ पहुँच तूँ
वीराना-ए-तन छोड़ गुलिस्ताँ कूँ पहुँच तूँ
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
ग़ज़ल
मिलते हैं कहाँ ख़ुद को हम बे-ख़ुद-ए-ग़म तन्हा
हम से भी मिला देना मिल जाएँ जो हम तन्हा
शमीम करहानी
ग़ज़ल
कोई साथी न कोई हमदम-ओ-ग़म-ख़्वार मैं तन्हा
फ़ज़ा में तैरती वीरानी-ए-शब-तार मैं तन्हा
ग़ुलाम मुस्तफ़ा फ़राज़
ग़ज़ल
वो दिन कब के बीत गए जब दिल सपनों से बहलता था
घर में कोई आए कि न आए एक दिया सा जलता था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़