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ग़ज़ल
ये भी कमाल ही तो है क़ाबिल-ए-दाद साहिबान
आज कलाम-ए-'जश्न' में कोई कमाल भी नहीं
सुनील कुमार जश्न
ग़ज़ल
देख कर शौक़-ए-शहादत बर-सर-ए-मक़्तल मिरा
क़ातिलों ने हाथ से घबरा के ख़ंजर रख दिए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
गौरय्यों ने जश्न मनाया मेरे आँगन बारिश का
बैठे बैठे आ गई नींद इसरार था ये किसी ख़्वाहिश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
यूँ तो चेहरे पे सजा रक्खी है इक बज़्म-ए-तरब
कितने मक़्तल हैं मिरे सीने के अंदर देखो
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
हर शख़्स मो'तरिफ़ कि मुहिब्ब-ए-वतन हूँ मैं
फिर 'अदलिया ने क्यूँ सर-ए-मक़्तल क्या मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
ऐ तिलिस्म-ए-रह-ए-मक़्तल मिरी आँखें मुझे दे
क़त्ल होना मिरा विर्सा है तो वहशत कैसी