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ग़ज़ल
ज़ुबैर अली ताबिश
ग़ज़ल
पीत में ऐसे लाख जतन हैं लेकिन इक दिन सब नाकाम
आप जहाँ में रुस्वा होगे वाज़ हमें फ़रमाते हो
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
आक़िब साबिर
ग़ज़ल
जहाँ वो ज़ुल्फ़-ए-बरहम कारगर महसूस होती है
वहाँ ढलती हुई हर दोपहर महसूस होती है