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ग़ज़ल
शिकवा-ए-वादा-ख़िलाफ़ी का मिला अच्छा जवाब
पेशगी रक्खी थी इक उम्मीद बर आई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
अब कोई तिरा मिस्ल नहीं नाज़-ओ-अदा में
अंदाज़ में शोख़ी में शरारत में हया में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
हिना तेरे कफ़-ए-पा को न उस शोख़ी से सहलाती
ये आँखें क्यूँ लहू रोतीं उन्हों की नींद क्यूँ जाती
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
सज-धज निगह अकड़ छब हुस्न-ओ-अदा-ओ-शोख़ी
नाम-ए-ख़ुदा हैं तुझ में ऐ नौजवान आठों
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
पास आना गर नहीं मंज़ूर तो आ आ के शक्ल
अज़-रह-ए-शोख़ी मुझे तू दूर से दिखला न जा