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ग़ज़ल
हर जज़्र-ओ-मद से दस्त-ओ-बग़ल उठते हैं ख़रोश
किस का है राज़ बहर में यारब कि ये हैं जोश
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
न तो बे-करानी-ए-दिल रही न तो मद्द-ओ-जज़्र-ए-तलब रहा
तिरे बाद बहर-ए-ख़याल में न ख़रोश उठा न ग़ज़ब रहा
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
जज़्र-ओ-मद हुस्न के दरिया में नज़र आता है
क़ाबिल-ए-दीद है आलम तिरी अंगड़ाई का
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
क्यूँ सफ़ीना मिरी हस्ती का हो ग़र्क़ाब-ए-फ़ना
जज़्र-ओ-मद दिल का है दरिया का तलातुम तो नहीं
मुनव्वर लखनवी
ग़ज़ल
तुलू-ए-सुब्ह अलामत तो जज़्र-ओ-मद की नहीं
अभी से किस लिए बदला है सत्ह-ए-आब का रंग
सिराजुद्दीन सिराज
ग़ज़ल
इक जज़्र-ओ-मद का आलम भी वाबस्ता-ए-क़िस्मत होता है
इंसान वहीं कुछ पाता है एहसास जहाँ तड़पाते हैं
शैख़ हसन मुश्किल अफ़कारी
ग़ज़ल
पोशीदा नहीं मुझ से कोई जज़्र-ओ-मद-ए-शौक़
महरम हूँ सदा दिलबर-ए-अंगेख़्ता-बर का
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
मैं मद्द-ओ-जज़्र-ए-तख़य्युल को उस के नाम करूँ
कि जिस का ज़िक्र हमेशा मिरे दरूद में था
नक़्क़ाश अली बलूच
ग़ज़ल
मैं खोना चाहता हूँ मद्द-ओ-जज़्र-ए-बहर में 'शौकत'
वो साहिल-आश्ना कश्ती का मेरी ना-ख़ुदा क्यूँ हो