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ग़ज़ल
नई तर्ज़ों से मयख़ाने में रंग-ए-मय झलकता था
गुलाबी रोती थी वाँ जाम हँस हँस कर छलकता था
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
प्यार हर-चंद झलकता है उन आँखों से मगर
ज़ख़्म भरते हैं 'मुज़फ़्फ़र' कहीं तलवारों से
मुज़फ़्फ़र वारसी
ग़ज़ल
मिरे अशआर हैं आईना-ए-सोज़-ए-दरूँ 'बज़्मी'
झलकता है मिरा ख़ून-ए-जिगर इन आबगीनों में