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ग़ज़ल
बिछड़ कर तुझ से मैं शब भर न सोया कौन रोया
ब-जुज़ मेरे ये दुख भी किस ने झेला मैं अकेला
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
बहुत सस्ते छुटे ऐ मौत बाज़ार-ए-मोहब्बत में
ये सौदा वो है जिस में क्या कहें क्या क्या झमेला था
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
कभी अपनों की यूरिश थी कभी ग़ैरों का रेला था
तिरे मिलने की ख़ातिर हम ने क्या क्या दुख न झेला था
हमीद जालंधरी
ग़ज़ल
नई रुतों के झमेले हों उस का ज़ाद-ए-सफ़र
शिकस्त-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना पे गुनगुनाऊँ मैं
अनवर महमूद खालिद
ग़ज़ल
कुछ तो मैं ही पागल था और कुछ था उस का पागल-पन
सोचो मैं ने झेला होगा कितना कितना पागल पन