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ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
शहर के बारह दरवाज़े हैं एक झरोका है ख़ुशबू का
सब पर तेरा नाम लिखा है ये समझाना पड़ जाता है
मंज़र नक़वी
ग़ज़ल
वो झरोका दम-ब-ख़ुद गुम-सुम रहा फिर भी 'बशीर'
मैं ने सौ पूछा वो रोज़-ओ-शब वो लम्हे क्या हुए
बशीर अहमद बशीर
ग़ज़ल
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
यूँ फ़ज़ा महकी कि बदला मिरे हमराज़ का रंग
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सुब्ह तक क्या क्या तिरी उम्मीद ने ताने दिए
आ गया था शाम-ए-ग़म इक नींद का झोका मुझे