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ग़ज़ल
जहाँ में थी बस इक अफ़्वाह तेरे जल्वों की
चराग़-ए-दैर-ओ-हरम झिलमिलाए हैं क्या क्या
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
वो बुझते दिल को न देखें किसी के ख़ूब है ये
वो मुँह को फेर लें जिस वक़्त झिलमिलाए चराग़
जावेद लख़नवी
ग़ज़ल
तिरी आशा का हर शब में बुझा सा जो दिखाई दे
वो तारा झिलमिलाए फिर मिरी सुब्हों की चौखट पर