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ग़ज़ल
आँखें पुर-नम हो जाती हैं ग़ुर्बत के सहराओं में
जब उस रिम-झिम की वादी के अफ़्साने याद आते हैं
हबीब जालिब
ग़ज़ल
बहुत धुँदला गया यादों की रिम-झिम में दिल-ए-सादा
वो मिल जाता तो हम ये आईना तब्दील कर लेते
सलीम कौसर
ग़ज़ल
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
इक दस्तक की रिम-झिम ने अंदेशों के दर खोल दिए
रात अगर हम सो जाते तो सपना देखने वाले थे