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ग़ज़ल
इस दिल के दरीदा दामन को देखो तो सही सोचो तो सही
जिस झोली में सौ छेद हुए उस झोली का फैलाना क्या
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
पुरनम इलाहाबादी
ग़ज़ल
अना के सिक्के होते हैं फ़क़ीरों की भी झोली में
जहाँ ज़िल्लत मिले उस दर पे जाना छोड़ देते हैं
अब्बास दाना
ग़ज़ल
शायद था बयाज़-ए-शब में कहीं इक्सीर का नुस्ख़ा भी कोई
ऐ सुब्ह ये तेरी झोली है या दुनिया भर का सोना है
हामिदुल्लाह अफ़सर
ग़ज़ल
एज़ाज़ अहमद आज़र
ग़ज़ल
दिल निकले ही मेहनत के घर हाथ जो हम ने भेजे थे
वो ही ख़ाली ले कर लौटे शाम को झोली बाबू-जी
कुंवर बेचैन
ग़ज़ल
रख दिया उन को भी झोली में सितमगारों की
मैं ने जिन हाथों से बुनियाद-ए-वफ़ा रक्खी थी