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ग़ज़ल
कभी दिन की धूप में झूम के कभी शब के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
झूम के फिर चलीं हवाएँ वज्द में आईं फिर फ़ज़ाएँ
फिर तिरी याद की घटाएँ सीनों पे छा के रह गईं