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ग़ज़ल
गुलों को बख़्श के ज़ख़्मों की ताज़गी मैं ने
बहार-ए-मुर्दा में इक जान डाल दी मैं ने
मोहम्मद इसहाक़ अफ़सर आफ़ाक़ी
ग़ज़ल
दाग़-ए-दिल दाग़-ए-जिगर शम-ए-फ़रोज़ाँ हो गया
उन के आते ही मिरे दिल में चराग़ाँ हो गया
फ़ाज़िल काश्मीरी
ग़ज़ल
जिगर थामे हुए याँ तालिब-ए-दीदार बैठे हैं
मज़े वाँ लूटने को बज़्म में अग़्यार बैठे हैं
अज़ीज़ुर रहमान अज़ीज़ पानी पती
ग़ज़ल
दौर-ए-हयात आएगा क़ातिल क़ज़ा के ब'अद
है इब्तिदा हमारी तिरी इंतिहा के ब'अद