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ग़ज़ल
वही शक़ जिगर न सियो सियो वही ज़ीस्त है न जियो जियो
वही ख़ून-ए-दिल न पियो पियो वही बादा है वही जाम है
क़लक़ मेरठी
ग़ज़ल
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
तुम्हारी तरह मिलना छोड़ कर बेदर्द हो रहना
कहो क्यूँ-कर ये सकता है जिते जियो ये गुनह हम सीं
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
सय्यद मुईनुद्दीन मख़्फ़ी
ग़ज़ल
कोई इम्तिहाँ ख़त्म है कोई काम फिर शुरूअ' है
ये जो फ़ुर्सतें हैं पल भर कहीं उन में ही जियो तुम
यूसुफ़ बिन मोहम्मद
ग़ज़ल
क़ाज़ी-जियो के दोनों बेटे हम से कहेंगे है वो मसल
घर में फ़रिश्ते के ख़ारिशते सो ख़ारिशते भूल गए