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ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
जॉब ज़रूरी होती है साहब मजबूरी होती है
जॉब के घनचक्कर में पड़ कर ख़्वाब बिखरने मत देना
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
क्यूँकि फ़र्बा न नज़र आवे तिरी ज़ुल्फ़ की लट
जोंक सी ये तो मिरा ख़ून ही पी जाती है
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
कल-पुर्ज़ों का रूह-ए-रवाँ ये और वो सरमाए की जोंक
लेकिन उस की नज़रों में ये धरती का नासूर हुआ
अहमद ज़िया
ग़ज़ल
ये हम भी देख लें पत्थर में कैसे जोंक लगती है
किसी सूरत से वो बुत राम हो जाए तो हम जानें