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ग़ज़ल
यूँही तो नहीं दश्त में पहुँचे यूँही तो नहीं जोग लिया
बस्ती बस्ती काँटे देखे जंगल जंगल फूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
यूँ तो हम ने आप की ख़ातिर होश गँवाए जोग लिया
लेकिन अब हम को समझाना आप के बस की बात नहीं
अख़्तर आज़ाद
ग़ज़ल
जंगल जंगल जोग में तेरे फिरते हैं इक रोग लिए
तिरे मिलन की आस जगी है दश्त का रस्ता भूल गया
शाइस्ता मुफ़्ती
ग़ज़ल
क्या जोग समाधि-ओ-रसधी क्या कश्फ़-ओ-करामत जज़्ब-ओ-जुनूँ
सब आग हवा पानी मिट्टी सब दाल नमक और आटा है
अज़ीज़ क़ैसी
ग़ज़ल
सुख ढूँडोगे दुख पाओगे प्रीत के बदले जलते आँसू
रीत यही इस जग की प्यारे इस जग का मामूल मियाँ
सय्यद शकील दस्नवी
ग़ज़ल
पंडित विद्या रतन आसी
ग़ज़ल
है कुछ न कुछ तो बजोग नाहक़ नहीं है ये बिरोग
कैसा लगा जी को रोग ऐ 'बहर' क्या हाल है