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ग़ज़ल
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कुछ भी नहीं होने की उलझन कुछ भी नहीं है तुम तो हो
ऐ मेरे दिल दश्त की जोगन कुछ भी नहीं है तुम तो हो
स्वप्निल तिवारी
ग़ज़ल
मन मंदिर में ध्यान मगन है इक तेरा सच्चा साधू
और साधू के फेरे लेती जोगन गहरी ख़ामोशी
ख़्वाजा तारिक़ उस्मानी
ग़ज़ल
चलो दिखला ही दें अब क़ुव्वत-ए-बाज़ू के कुछ जौहर
ये अहल-ए-ज़ुल्म हम को नक़्श-ए-फ़र्यादी समझते हैं
कलीम क़ैसर बलरामपुरी
ग़ज़ल
हुसना सरवर
ग़ज़ल
जिस्म-ओ-जाँ पर किसी जोगी का मैं साया देखूँ
इश्क़ की ताल पे जोगन का थिरकना देखूँ