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ग़ज़ल
ग़म-ए-इंसाँ से जो दिल शो'ला-ब-जाँ होता है
वही हर दौर में मेमार-ए-जहाँ होता है
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
जो शब-ए-सियाह से डर गए किसी शाम ही में भटक गए
वही ताजदार-ए-सहर बने जो सियाहियों में चमक गए
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
ज़ीस्त है इक मासियत सोज़-ए-दिली तेरे बग़ैर
हाँ मोहब्बत भी है इक आलूदगी तेरे बग़ैर
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
फ़र्क़ जो कुछ है वो मुतरिब में है और साज़ में है
वर्ना नग़्मा वही हर पर्दा-ए-आवाज़ में है
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
देखा कुछ आज यूँ किसी ग़फ़लत-शिआ'र ने
मैं अपनी उम्र-ए-रफ़्ता को दौड़ा पुकारने
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
गुलशन है उसी का नाम अगर हैराँ हों बयाबाँ क्या होगा
हंगाम-ए-बहाराँ जब ये है अंजाम-ए-बहाराँ क्या होगा
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
आलमताब तिश्ना
ग़ज़ल
राज़-ए-हस्ती तिश्ना-ए-ता'बीर है तेरे बग़ैर
ज़िंदगी तक़्सीर ही तक़्सीर है तेरे बग़ैर