आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "kaahil"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "kaahil"
ग़ज़ल
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन पर
वो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सब मुनाफ़िक़ ही नज़र आते हैं बातिल के सिवा
हैं सभी शाद मिरे क़त्ल पे क़ातिल के सिवा
एजाज़ परवाना
ग़ज़ल
इश्क़ ही पूरी तरह कर लें तो समझो कोई जिहाद किया है
ये 'फ़रहत-एहसास' अज़ल के काहिल क्या कोई काम करेंगे
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
ख़ुदा पर हो यक़ीं कामिल अगर इंसाँ न हो काहिल
तलातुम-ख़ेज़ मौजें भी मदद करतीं समुंदर की
एजाज़ परवाना
ग़ज़ल
नहीं आसान ऐ बेटा कोई इंसान कामिल हो
पढ़ा लिक्खा बहुत कुछ फिर भी तुम जाहिल के जाहिल हो