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ग़ज़ल
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
क़मर की तरह न हों काहिशें कभी उस को
ज़वाल 'बद्र' को या-रब न हो कमाल के बा'द
सय्यद अमीर हसन बद्र
ग़ज़ल
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
शहर आबादी से ख़ाली हो गए ख़ुश्बू से फूल
और कितनी ख़्वाहिशें हैं जो दिलों में क़ैद हैं
सलीम कौसर
ग़ज़ल
नोशी गिलानी
ग़ज़ल
ख़्वाहिशें परिंदों से लाख मिलती-जुलती हों
दोस्त पर निकलने में देर कुछ तो लगती है