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ग़ज़ल
राज़ इलाहाबादी
ग़ज़ल
क्यों ज़ुल्मत-ए-ग़म से हो 'ख़ुमार' इतने परेशान
बादल ये हमेशा ही तो काले न रहेंगे
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
भाग रही है गेंद के पीछे जाग रही है चाँद के नीचे
शोर भरे काले नारों से अब तक डरी नहीं है दुनिया
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
हम जो कुछ हैं हम जैसे हैं वैसे ही दिखाई देते हैं
चेहरे पे भभूत नहीं मलते कभी काले बाल नहीं करते