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ग़ज़ल
बातें करनी पड़ती हैं दीवार पे बैठे कव्वे से
इस चिड़िया से सारे दिन का क़िस्सा कहना पड़ता है
अफ़ज़ाल फ़िरदौस
ग़ज़ल
गर यही है रविश-ए-अहल-ए-गुलिस्ताँ तो 'क़वी'
जल सकेंगे न गुलिस्ताँ में बहारों के चराग़