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ग़ज़ल
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बाग़बाँ गुलचीं को चाहे जो कहे हम को तो फूल
शाख़ से बढ़ कर कफ़-ए-दिलदार पर अच्छा लगा
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जिस दिन उस से बात हुई थी उस दिन भी बे-कैफ़ था मैं
जिस दिन उस का ख़त आया है उस दिन भी वीरानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
उस महफ़िल-ए-कैफ़-ओ-मस्ती में उस अंजुमन-ए-इरफ़ानी में
सब जाम-ब-कफ़ बैठे ही रहे हम पी भी गए छलका भी गए