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ग़ज़ल
आब ओ गिया से बे-नियाज़ सर्द जबीन-ए-कोह पर
गर्मी-ए-रू-ए-यार का अक्स भी राएगाँ गया
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
मौज-ए-दरिया को पिएँ क्या ग़म-ए-ख़म्याज़ा करें
रग-ए-अफशुर्दा-ए-सहरा में लहू ताज़ा करें
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
शोर-ए-तूफ़ान-ए-हवा है बे-अमाँ सुनते रहो
बंद कूचों में रवाँ है ख़ून-ए-जाँ सुनते रहो
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
फूल कुचले जा रहे थे बाग़बाँ चीख़ा किया
ये ज़मीं रोती रही वो आसमाँ चीख़ा किया
ज़ोहेब फ़ारूक़ी अफ़रंग
ग़ज़ल
मौसम-ए-संग-ओ-रंग से रब्त-ए-शरार किस को था
लहज़ा-ब-लहज़ा जल गई दर्द-ए-बहार किस को था
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
लग़्ज़िश पा-ए-होश का हर्फ़-ए-जवाज़ ले के हम
ख़ुद को समझने आए हैं रूह-ए-मजाज़ ले के हम
शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
तुम अपनी यादों की कहकशाँ से सजा हुआ आसमान बन कर
मिरे तसव्वुर पे छा भी जाओ मोहब्बतों का जहान बन कर