aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "kaifi"
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे होक्या ग़म है जिस को छुपा रहे हो
झुकी झुकी सी नज़र बे-क़रार है कि नहींदबा दबा सा सही दिल में प्यार है कि नहीं
किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखेकभी कभी दर ओ दीवार घर के देखते हैं
मैं ढूँडता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलतानई ज़मीन नया आसमाँ नहीं मिलता
कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रखतू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ
इतना तो ज़िंदगी में किसी के ख़लल पड़ेहँसने से हो सुकून न रोने से कल पड़े
शोर यूँही न परिंदों ने मचाया होगाकोई जंगल की तरफ़ शहर से आया होगा
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलेंजिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
आज सोचा तो आँसू भर आएमुद्दतें हो गईं मुस्कुराए
बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगेइक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
क्या जाने किस की प्यास बुझाने किधर गईंइस सर पे झूम के जो घटाएँ गुज़र गईं
की है कोई हसीन ख़ता हर ख़ता के साथथोड़ा सा प्यार भी मुझे दे दो सज़ा के साथ
शब-ए-इंतिज़ार आख़िर कभी होगी मुख़्तसर भीये चराग़ बुझ रहे हैं मिरे साथ जलते जलते
वो जिन को प्यार है चाँदी से इश्क़ सोने सेवही कहेंगे कभी हम ने ख़ुद-कुशी कर ली
इन लम्हों में किस कि शिरकत कैसी शिरकतउसे बुला कर अपना काम बढ़ाया हम ने
जो वो मिरे न रहे मैं भी कब किसी का रहाबिछड़ के उन से सलीक़ा न ज़िंदगी का रहा
वो भी सराहने लगे अर्बाब-ए-फ़न के बा'ददाद-ए-सुख़न मिली मुझे तर्क-ए-सुख़न के बा'द
हाथ आ कर लगा गया कोईमेरा छप्पर उठा गया कोई
ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैंवफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम
आइने का साथ प्यारा था कभीएक चेहरे पर गुज़ारा था कभी
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