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ग़ज़ल
तो क्यूँ सज़ा में हो तन्हा गुनाहगार कोई
यहाँ तो जीते हैं सब इर्तिकाब-ए-ख़्वाब के साथ
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
वो चाँदी के पानी से धुले आरिज़-ओ-रुख़ पर
कैफ़िय्यत-ए-सद-रंग-ए-हिना याद है अब तक
सज्जाद बाक़र रिज़वी
ग़ज़ल
क्या है ये कैफ़ियत-ए-मौसम-ए-गुल-पैराहन
न कहीं बाद-ए-बहारी न कहीं बू-ए-सुख़न
अलीम अख़्तर मुज़फ़्फ़र नगरी
ग़ज़ल
कैफ़ियात-ए-सज्दा-ए-ज़ौक़-ए-मोहब्बत अल-अमाँ
का'बा-ए-दिल बे-नियाज़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ हाए हाए
बासित भोपाली
ग़ज़ल
ग़र्क़-ए-कैफ़ियत-ए-आहंग-ए-तरब सुन तो सही
ज़िंदगी दर्द में डूबी हुई आवाज़ भी है
राम कृष्ण मुज़्तर
ग़ज़ल
अल्लह अल्लह वहदत-ए-जज़्बात-ओ-कैफ़िय्यात-ए-इश्क़
एक सूरत में हुआ अंजाम भी आग़ाज़ भी