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ग़ज़ल
फूट चुकी हैं सुब्ह की किरनें सूरज चढ़ता जाएगा
रात तो ख़ुद मरती है सितारो तुम को कौन बचाएगा
नाज़िश प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
ढाते हैं अब वो ज़ुल्म-ओ-सितम कम बहुत ही कम
या'नी है उन का लुत्फ़-ओ-करम कम बहुत ही कम
क़ैस जालंधरी
ग़ज़ल
सीमा गुप्ता
ग़ज़ल
ये भी नहीं कि बाला-ओ-बरतर नहीं हूँ मैं
माना कि मुश्त-ए-ख़ाक से बढ़ कर नहीं हूँ मैं
नाज़ निज़ामी
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़
मोहम्मद ज़करिय्या ख़ान
ग़ज़ल
हमारी अर्ज़-ए-मतलब पर तिरा बेज़ार हो जाना
ज़रा सी बात पर आमादा-ए-पैकार हो जाना