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ग़ज़ल
कलबा-ए-मेहनत-कशां को दे के ग़ैरत का चराग़
शौकत-ए-क़स्र-ए-ज़र-अफ़्शाँ बेचता फिरता हूँ मैं
शोरिश काश्मीरी
ग़ज़ल
शरीक-ए-ज़ुमरा-ए-मेहनत-कशाँ है शाइ'र भी
बहा-ए-सद-नफ़स-ए-ख़ूँ-चकाँ है इक मज़मूँ
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
ग़ज़ल
सिक्का-ए-दाग़-ए-जुनूँ मिलते जो दौलत माँगता
तंग करती मुफ़्लिसी गर मैं फ़राग़त माँगता
आग़ा अकबराबादी
ग़ज़ल
ये कश्कोल-ए-गदाई है फ़क़त मा'ज़ूर को ज़ेबा
कभी मेहनत-कशों के हाथ में कासा नहीं होता