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ग़ज़ल
किस गुल के तसव्वुर में है ऐ लाला जिगर-ख़ूँ
ये दाग़ कलेजे पे उठाना नहीं अच्छा
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
दहकता है कलेजे में कसक का कोएला अब तक
अभी तक दिल के बाम-ओ-दर पे हिज्र ओ ग़म के साए हैं
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
हिला देंगे अभी ऐ संग-दिल तेरे कलेजे को
हमारी आह-ए-आतिश-बार से पत्थर पिघलते हैं
भारतेंदु हरिश्चंद्र
ग़ज़ल
कलेजा हो गया ज़ख़्मी फ़िराक़-ए-जानाँ में
हज़ारों तीर-ए-सितम दिल पे खा के बैठे हैं
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
उधर उस की शरारत जिस ने ग़म की आग सुलगा दी
इधर मेरा कलेजा जिस में छाले पड़ते जाते हैं