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ग़ज़ल
रिवाज-ए-जाम-ओ-सुबू से बचा बचा के पिला
पिलाने वाले नज़र से नज़र मिला के पिला
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
कोई उस से नहीं कहता कि ये क्या बेवफ़ाई है
चुरा कर दिल मिरा अब आँख भी अपनी चुराई है
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
सरदार गंडा सिंह मशरिक़ी
ग़ज़ल
जिस के हाथों में हुआ था संग-रेज़ों का शिकार
आज वो भी हो गया अपने गुनाहों का शिकार