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ग़ज़ल
ग़म-ए-उम्र-ए-मुख़्तसर से अभी बे-ख़बर हैं कलियाँ
न चमन में फेंक देना किसी फूल को मसल कर
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ये नाज़ुक लब हैं या आपस में दो लिपटी हुई कलियाँ
ज़रा इन को अलग कर दो तरन्नुम फूट जाएँगे
राजेन्द्र कृष्ण
ग़ज़ल
बैठे हैं फुलवारी में देखें कब कलियाँ खिलती हैं
भँवर भाव तो नहीं है किस ने इतनी राह दिखाई है
मीराजी
ग़ज़ल
मुन्नी की भोली बातों सी चटकीं तारों की कलियाँ
पप्पू की ख़ामोशी शरारत सा छुप छुप कर उभरा चाँद
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
अश्कों की उजली कलियाँ हों या सपनों के कुंदन फूल
उल्फ़त की मीज़ान में मैं ने जो था सब कुछ तोल दिया
शकेब जलाली
ग़ज़ल
कहीं चिड़ियाँ चहकती हैं कहीं कलियाँ चटकती हैं
मगर मेरे मकाँ से आसमाँ तक रात होती है