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ग़ज़ल
वो लंदन में मकीं हैं और मैं हूँ चेचों की मलयाँ में
हमारी दोस्ती क़लमी दवाती होती जाती है
अबीर अबुज़री
ग़ज़ल
हर मज़हब बे-रूह जसद है जज़्बे की क़ल्लाशी है
राख के तूदे पूजते हैं ये का'बा है वो काशी है
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
कलग़ी की जा पर ताज में रख ले ज़ौक़ रहे पा-बोसी का
पाए अगर बिल्क़ीस कहीं तस्वीर तिरी गुरगाबी की
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
मोहब्बत मा-सिवा की जिस ने की गोरी कलोटी की
यक़ीं कीजो कि काफ़िर हो के अपनी राह खोटी की