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ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
दो कलों के बीच में इक आज हूँ उलझा हुआ
मेरी इस कम-फ़ुर्सती के कर्ब को समझो ज़रा
अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
ग़ज़ल
आँखों पे लटों का झुक आना तासीर-ए-नज़र का बढ़ जाना
अमृत के कटोरों में आख़िर कुछ ज़हर मिलाया कालों ने
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
मग़रिब में हैं ख़ुद हाथ हैं मशरिक़ की कलों पर
इन नफ़्स के बंदों से जसामत कोई पूछे
सय्यद मोहम्मद अहमद नक़वी
ग़ज़ल
था दरबार-ए-कलाँ भी उस का नौबत-ख़ाना उस का था
थी मेरे दिल की जो रानी अमरोहे की रानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
आमिर अमीर
ग़ज़ल
कशिश से कब है ख़ाली तिश्ना-कामी तिश्ना-कामों की
कि बढ़ कर मौजा-ए-दरिया लब-ए-साहिल से मिलता है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
रग-ए-ताक मुंतज़िर है तिरी बारिश-ए-करम की
कि अजम के मय-कदों में न रही मय-ए-मुग़ाना