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ग़ज़ल
मिरे कार-ज़ार-ए-हयात में न कोई नजीब न कम-नसब
यहाँ नाम सिर्फ़ हुनर का है यहाँ चर्चे बस हैं कमाल के
असलम महमूद
ग़ज़ल
आफ़ताब हुसैन
ग़ज़ल
मैं हर्फ़ देखूँ कि रौशनी का निसाब देखूँ
मगर ये आलम कि टहनियों पर गुलाब देखूँ
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
नई ज़िंदगी की हवा चली तो कई नक़ाब उतर गए
जिन्हें इंक़लाब से प्यार था वही इंक़लाब से डर गए
शाहिद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
तू मुब्तला-ए-इश्क़ है ग़म का निसाब ढूँड
उन्वान जिस का हिज्र हो ऐसी किताब ढूँड
मिर्ज़ा फ़रहान आरिज़
ग़ज़ल
अहल-ए-दानिश की निगाहों में हदफ़ कोई नहीं
सर तो अब भी है मगर संग-ब-कफ़ कोई नहीं
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
ग़ज़ल
सब अपनी ज़ात में गुम हैं ये सोच कर 'नायाब'
पराए दर्द को क्यूँ दर्द-ए-सर बनाया जाए