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ग़ज़ल
पस-ए-दीवार तड़पोगे कहाँ तक शौक़ कहता है
कमंद-ए-आह से चढ़ जाओ बाम-ए-क़स्र-ए-जानाँ पर
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
कोई बादा-कश जिसे मय-कशी का तरीक़-ए-ख़ास न आ सका
ग़म-ए-ज़िंदगी की कशा-कशों से कभी नजात न पा सका
नरेश एम. ए
ग़ज़ल
बुलबुल न बाज़ आइयो फ़रियाद-ओ-आह से
कब तक न होगी क़ल्ब-ए-गुल-ए-तर को इत्तिलाअ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
पोशाक न तू पहनियो ऐ सर्व-ए-रवाँ सुर्ख़
हो जाए न परतव से तिरे कौन-ओ-मकाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
डूबूँगा गर है मेरे मुक़द्दर में डूबना
ग़व्वास-ए-बहर-ए-इश्क़ को साहिल से क्या ग़रज़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
खिलाया परतव-ए-रुख़्सार ने क्या गुल समुंदर में
हुबाब आ कर बने हर सम्त से बुलबुल समुंदर में