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ग़ज़ल
ये फ़ैज़ान-ए-नज़र था या कि मकतब की करामत थी
सिखाए किस ने इस्माईल को आदाब-ए-फ़रज़ंदी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
फ़िक्र-ए-तख़्लीक़-ए-सुख़न मसनद-ए-राहत पे हफ़ीज़
बाइस-ए-कश्फ़-ओ-करामात नहीं होती है
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
गुम हो के हर जगह हैं ज़-ख़ुद रफ़्तगान-ए-इश्क़
उन की भी अहल-ए-कश्फ़-ओ-करामात ज़ात है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ये साक़ी की करामत है कि फ़ैज़-ए-मय-परस्ती है
घटा के भेस में मय-ख़ाने पर रहमत बरसती है