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ग़ज़ल
छुपा कर अपनी करतूतें हुनर की बात करते हैं
शजर को काटने वाले समर की बात करते हैं
प्रमोद शर्मा असर
ग़ज़ल
नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं
ठंडी हवाएँ भी तिरी याद दिला के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हैं किसी के मुंतज़िर हम मगर ऐ उमीद-ए-मुबहम
कहीं वक़्त रह न जाए यूँही करवटें बदल कर
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
ये शिकस्त-ए-दीद की करवटें भी बड़ी लतीफ़ ओ जमील थीं
मैं नज़र झुका के तड़प गया वो नज़र बचा के निकल गए
शायर लखनवी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
लेते लेते करवटें तुझ बिन जो घबराता हूँ मैं
नाम ले ले कर तिरा रातों को चिल्लाता हूँ मैं
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
बदलती जा रही है करवटों पर करवटें दुनिया
किसी सूरत नहीं खुलता जहान-ए-रंग-ओ-बू क्या है