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ग़ज़ल
दर्द ने करवट ही बदली थी कि दिल की आड़ से
दफ़अ'तन पर्दा उठा और पर्दा-दार आ ही गया
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
उस को तन्हा कर गई करवट कोई पिछले पहर की
फिर उड़ा भागा वो सारा दिन नगर भर में अकेला