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ग़ज़ल
न होगा यक-बयाबाँ माँदगी से ज़ौक़ कम मेरा
हबाब-ए-मौजा-ए-रफ़्तार है नक़्श-ए-क़दम मेरा
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
राह-ए-हक़ में जो हर इक चीज़ लुटाता है 'कशिश'
उस की झोली को ख़ुदा ग़ैब से भर देता है
कशिश संदेलवी
ग़ज़ल
चाहतों की आस में ढूँढा ज़माना ऐ 'कशिश'
तेरी ख़ातिर दूसरे लोगों को ठुकराना पड़ा