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ग़ज़ल
कश्कोल-ए-चश्म ले के फिरो तुम न दर-ब-दर
'मंज़ूर' क़हत-ए-जिंस-ए-वफ़ा का ये साल है
मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
ग़ज़ल
हम ने सब को मुफ़्लिस पा के तोड़ दिया दिल का कश्कोल
हम को कोई क्या दे देगा क्यूँ मुँह-देखी बात करें
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
दुनिया वालों ने चाहत का मुझ को सिला अनमोल दिया
पैरों में ज़ंजीरें डालीं हाथों में कश्कोल दिया