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ग़ज़ल
गली-कूचों में चौराहों पे या बस की क़तारों में
मैं उस चुप-चाप सी लड़की को अक्सर देख लेता हूँ
मोहम्मद अल्वी
ग़ज़ल
दरीदा-नक़्श ज़ख़्मी लफ़्ज़ लर्ज़ीदा क़तारों में
लहू में किस ने रंगा है मिरे दीवान का मंज़र
ताहिर अदीम
ग़ज़ल
सब चल पड़ें जो ख़ुल्द को जाती हो कोई राह
गुल-मोहर की दो-रूया क़तारों की छाँव में
रशीद कौसर फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
वो कैसा जोश था बच्चों में भी शहादत का
उचक रहे थे जो पंजों के बल क़तारों में
अब्दुस्समद ख़ाँ क़ैसर
ग़ज़ल
आँगन में जो दीप क़तारों में रक्खे थे धुआँ हुए
हवा चली उस रात बहुत जब मेरे घर दीवाली थी
विजय शर्मा
ग़ज़ल
मिरी बे-इख़्तियारी में भी रब्त-ओ-ज़ब्त क़ाएम है
उमड आते हैं जो आँसू तो बहते हैं क़तारों में
साहिर सियालकोटी
ग़ज़ल
फिर दोस्तों यारों की तरफ़ देख रहा हूँ
साँपों की क़तारों की तरफ़ देख रहा हूँ
पंडित अमर नाथ होशियार पुरी
ग़ज़ल
'बेताब' नुमायाँ नहीं कुछ ऐसे मगर हाँ
इन लम्बी क़तारों में कहीं हम भी खड़े हैं