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ग़ज़ल
हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वो मेरी दुनिया का हिस्सा थी मेरी दुनिया नहीं
एक शजर कटने से बन वीरान हो जाएगा क्या
बालमोहन पांडेय
ग़ज़ल
कटने लगीं रातें आँखों में देखा नहीं पलकों पर अक्सर
या शाम-ए-ग़रीबाँ का जुगनू या सुब्ह का तारा होता है