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ग़ज़ल
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
वो बेदर्दी से सर काटें 'अमीर' और मैं कहूँ उन से
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता जनाब आहिस्ता आहिस्ता
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
अमीर ख़ुसरो
ग़ज़ल
इश्क़ की हालत कुछ भी नहीं थी बात बढ़ाने का फ़न था
लम्हे ला-फ़ानी ठहरे थे क़तरों की तुग़्यानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
काँटों से भरा है दामन-ए-दिल शबनम से सुलगती हैं पलकें
फूलों की सख़ावत क्या कहिए कुछ याद रही कुछ भूल गए